जौनपुर: कहीं गुम न हो जाये ऐतिहासिक शिव मंदिर की पहचान

केराकत, जौनपुर। जौनपुर-केराकत मार्ग पर जनपद मुख्यालय से सात किलोमीटर पूर्व स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर को शासन प्रशासन की उपेक्षा के चलते जहां इसे पर्यटक स्थल का दर्जा नसीब नहीं हो सका वही यह भव्य मंदिर अपनी पहचान भी खोता जा जा रहा है। अगर शासन प्रशासन का इस ऐतिहासिक शिवमंदिर के प्रति उपेक्षित रवैया यही बना रहा तो निश्चित यह मंदिर को अपनी पहचान की दुनिया में गुम होने में देर नहीं लगेगी।
देखा जाय तो सम्पूर्ण जनपद में इतने भव्य व  सुन्दर आकर्षक ढंग का बना मंदिर  कहीं भी दूर-दूर तक नजर नहीं आता। जौनपुर के प्राचीन मंदिरों में दर्ज इस खूबसूरत  शिवमंदिर का रखरखाव, देख भाल हेतु शासन प्रशासन अपनी बेरु खीपन रवैया अपनाए  हुए है। यही नहीं जनप्रतिनिधियों व समाज सेवी का नकारात्मक रवैया भी लोगो को कचोटती रहती है। श्रद्धालुओ के आस्था का केंद्र बने इस मंदिर का निर्माण दिवंगत नरेश, श्रीकृष्ण दत्त दूबे ने बहुत ही मनोयोग व असीम श्रद्धा से कराया था। 
इस शिव मंदिर के निर्माण में धर्मापुर व आस पास के दर्जनो गांवों के ग्रामीणो के नि:शुल्क श्रम दान को भुलाया नहीं जा सकता। क्षेत्र के बुजुर्ग लोगो का कहना है कि इस मंदिर के निर्माण की शुरु आत वर्ष 1943 में राजा साहब ने किया था। राजा साहब ने इस मंदिर को भव्यता प्रदान  करने की नीयत से लखनऊ के जाने माने प्रसिद्ध मिस्त्री को बुलाया था। मंदिर  का निर्माण कार्य एक वर्ष तक अनवर चलता रहा। जिसमें 70 मजदूर अनवरत निर्माण कार्य  में लगे रहे। राजा जौनपुर मंदिर निर्माण की स्थिति का जायजा लेने प्रतिदिन जौनपुर से आते जाते रहे। दो बीघे में बने इस शिवमंदिर में स्थापित शिवलिंग को काशी से मंगवाया गया था। शिवलिंग के ऊपर खूबसूरत चांदी सर्प था, जिसको चोरों ने चांदी वाले सर्प पर वर्ष 1970 में हांथ साफ कर दिया है। मंदिर के चारों तरफ जल अच्छादित सरोवर है। मंदिर  में जाने हेतु 3-4 फिट का चौड़ा छोटा सा सुन्दर पुल बनाया गया है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पूजा अर्चन की मुद्रा में दो महिलाओं की सुन्दर मूर्ति स्थापित की गयी है। जो मंदिर  की शोभा को अलोकित करती है। 
प्रवेश द्वार के ठीक सामने संगमरमर से तराशा खूबसूरत भगवान शिव का एवं उनकी सवारी नंदी गाय की आकृति बैठाई गयी है। मंदिर  के अंदर सुन्दर तरीके से दीवारो पर जानवरों की आकृति बनाई गई है। राजा जौनपुर ने  पूर्ण वैदिक रीति-रिवाज के अनुसार राज्य पुरोहित के निर्देशन मंदिर में शिव लिंग की प्राण प्रतिष्ठा शानदार तरीके से कराया था। प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन कई दिनो तक चलता रहा, जिसमें काफी दूर-दूर के नामी गिरामी हस्तियो ने प्रतिभाग किया था। रानी जौनपुर  साहिबा जी जब भी इस मंदिर की दर्शन पूजन हेतु आती थी तो उनके आगमन वाले मार्ग  पर दोनो तरफ से कपड़ो का घेरा बनाया जाता था। मंदिर में उस समय, राजा और रानी के साथ राज्य पुरोहित ही पूजा अर्चना करते थे। 
राजा ने शिवमंदिर के मार्ग के उत्तर तरफ एक विश्रामालय बनवाया था। यही नहीं मंदिर के सरोवर के पास एक छोटी सी कुटिया भी बनवाया था तथा सोरवर में एक छोटी सी नाव भी हुआ करती थी। जिसपर बैठकर पुजारी  सरोवर को पार कर मंदिर में पूजा पाठ करते थे। इस मंदिर के पुजारी रहे राम दुलार यादव का पिछले वर्ष कोरोना काल में निधन हो जाने के कारण उनके पुत्र लालजी यादव  पुजारी के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वर्तमान के पुजारी के भाई शिक्षक राजेश यादव का कहना कि पुरातत्व विभाग व सरकारी उपेक्षाओ के कारण इस मंदिर की अपेक्षित देखभाल नहीं हो पा रहा है। इस मंदिर की साफ सफाई  रंगाई  पुताई  अपने स्तर  से  समय समय पर किया जाता है। लोगों का कहना है कि इस प्राचीन मंदिर को पर्यटक के रूप में विकसित कि या जा सकता है। लोगो  ने बताया कि वर्ष 1985 में इस मंदिर पर भोजपुरी  फिल्म मैभा महतारी की शूटिंग हुई थी। जो काफी लोकप्रिय भी था।

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