जौनपुर: बसौली माई के जयकारे से गूंज उठा देवी धाम बसौली क्षेत्र

जौनपुर: बसौली माई के जयकारे से गूंज उठा देवी धाम बसौली क्षेत्र


सुइथाकला, जौनपुर। शारदीय नवरात्रि के आठवें दिन महा अष्टमी को शीतला माता शक्तिपीठ देवी धाम बसौली में दर्शन पूजन के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। मंदिर में लगभग 5 000 भक्तों ने दर्शन किए ।बसौली  माई के जयकारों से देवी धाम बसौली परिसर गूंज उठा। भक्त माता रानी के प्रति विशेष श्रद्धा, आस्था और भक्ति भावना में डूबे हुए दिखे। मंदिर के पुजारी पंडित रमेश तिवारी ने बताया कि अष्टमी के दिन रोज की अपेक्षा विशेष भीड़ होती है। मां के भक्तों और दर्शनार्थियों में भक्ति और आस्था कूट-कूट कर भरी है। जो भी उनके चरणों में निष्कपट भाव से  मत्था टेकता है उसकी मुरादे मां अवश्य पूरी करती हैं। उन्होंने बताया कि महाअष्टमी यानी आठवें दिन मां महागौरी की पूजा होती है, जो देवी दुर्गा का आठवां स्वरूप हैं।  ऐसा कहा जाता है कि देवी की खास पूजा करने से जीवन के सभी दुखों का अंत होता है।

  • मंदिर का इतिहास

जौनपुर: बसौली माई के जयकारे से गूंज उठा देवी धाम बसौली क्षेत्र

जनपद के पश्चिमांचल में स्थित सुइथाकला विकासखंड क्षेत्र का शीतला माता का मंदिर देवी धाम बसौली 18 वीं शताब्दी के पहले से ही अस्तित्व में है। यह मंदिर कब से बना है किसी को भी पता नहीं है। यह मंदिर अनेकों अलौकिक रहस्यों से भरा हुआ है। जब कि मंदिर के अंदर तीन दरवाजे में ताले लगे होते हैं। चोरी करने वाला कर अपने जुर्म को अपने आप स्वीकार कर लेता है। यह पेड़ कितना पुराना है फिर भी लोगों को  ज्ञात नहीं है। कहा जाता है कि बसौली के ही चौहर्जन सिंह ने मन्नत मांगी थी जो पूर्ण हुई और उन्होंने इस मंदिर का निर्माण कराया। जबकि इस स्थान पर पहले से ही मंदिर था। कब बनवाया किसने बनवाया किसी को भी ज्ञात नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि माताजी भूमि के अंदर से प्रकट हुई थीं। इसका पता तब चला जब एक केवट जंगल में लकड़ी काट रहा था उसका पैर जमीन में गड़ी मूर्ति पर पड़ा। वह गिरकर मूर्छित हो गया बाद में होश आने पर उसने ही बताया कि जमीन के नीचे मूर्ति है। बाद में खुदाई हुई तो उस मूर्ति को शीतला माता का स्वरूप माना गया। 


  • -पं.रमेश तिवारी मुख्य पुजारी देवी धाम बसौली सुइथाकला, जौनपुर।

-पं.रमेश तिवारी मुख्य पुजारी देवी धाम बसौली सुइथाकला, जौनपुर।

मां की लीला असीम है। इनके चरणों में जो भी श्रद्धा से सिर झुकाता है, सच्चे हृदय और निस्वार्थ भाव से कोई कामना करता है तो मां उसकी मुरादे जरूर पूरी करती हैं। मां मां के चरणों में अगाध श्रद्धा, अटूट विश्वास, आस्था और निश्चल भक्ति करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। देवी धाम में एक नीम का पेड़ है जिसके तने में त्रिपिंडी बनी है। धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार विद्वानों का मत है कि नीम के पेड़ में त्रिपिंडी का बनना शीतला माता के वास को दर्शाता है। 

  • -विजय सिंह (नन्हे) वरिष्ठ समाजसेवी, क्षेत्रीय नागरिक।

-विजय सिंह (नन्हे) वरिष्ठ समाजसेवी, क्षेत्रीय नागरिक।

करीब 15 साल पहले एक बड़ा गंभीर मामला था जो किसी भी कीमत पर हल नहीं हो रहा था। थक- हार कर, भटक कर निराश और हताश हो गया था। उक्त समस्या के निदान के लिए मां के चरणों में अर्जी लगाई ।न्याय के लिए गुहार लगाई। मां की असीम कृपा से समस्या का तत्काल और शत प्रतिशत समाधान हुआ।मां की कृपा से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। उनकी कृपा से ही कोई व्यक्ति सेवा कर सकता है । माता जी की महिमा अपरंपार है। चाहे जितनी प्रशंसा  की जाए कम है। 

  • शैलेश गिरी सहायक पुजारी, देवी धाम बसौली सुइथाकला।

शैलेश गिरी सहायक पुजारी, देवी धाम बसौली सुइथाकला।

रात में दो से तीन बजे के बीच अपने आप घंटा बजता है। हमने कई बार सुना है। यह एक अद्भुत और अलौकिक घटना है। इस मंदिर से जुड़े कई चमत्कार हो चुके हैं।यहां तक कि इस मंदिर में जो भी चोरी करता है वह अपने गुनाह आकर खुद कबूल करता है। 

  • पंडित शारदा प्रसाद तिवारी, स्थानीय नागरिक।


बसौली गांव का नाम संस्कृत शब्द  बेसीवती का हिंदी रूपांतरण है यह क्षेत्र का प्रमुख शक्तिपीठ है। लाखों लोगों की अटूट श्रद्धा और विश्वास तथा भक्ति भावना इस पवित्र स्थल से जुड़ी है। मां शीतला मौली माता के नाम से कुलदेवी के रूप में 14 कोस में विख्यात हैं। 
  • डॉ. रणजीत सिंह पूर्व प्रधानाचार्य श्री गांधी स्मारक इंटर कॉलेज  समोधपुर, सुइथाकला।

डॉ. रणजीत सिंह पूर्व प्रधानाचार्य श्री गांधी स्मारक इंटर कॉलेज  समोधपुर, सुइथाकला।

क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि दूर-दूर तक के लोगों के लिए यह आस्था का मुख्य केंद्र है। ब्लॉक मुख्यालय के दक्षिण स्थित इस मंदिर को बसौली माई के नाम से लोग बखूबी जानते हैं। यह प्राचीन मंदिर है जहां लोग नवरात्र के समय प्रतिदिन मन्नते पूरी होने पर दर्शन- पूजन, कड़ाही चढ़ाने के लिए लोग आते हैं शुक्रवार और सोमवार को सुबह तड़के से लेकर शाम तक यहां भक्तों की विशेष भीड़ होती है।

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