मिलने तुम आ जाना
नित्य नए षड्यंत्र देख,
कब तक खामोश रहूं मैं?
देख जुल्म अन्याय को,
कब तक इन्हें सहूं मैं?
अपने अनकहे दर्द को मैंने,
बयां किया ना लब्जों से।
सुन लो, मैं भी इक मानव हूँ,
विचलित होता जज्बों से।।
कभी चुप रहता संबंधों से,
कभी डरूँ जग लज्जों से।।
समझों मेरे कलम भाव को,
जो कहा न कभी लफ्जों से।।
तोड़े सब वादे, सपने तुमने,
खामोश रहा, हो मेरे अपने।
नित्य षड्यंत्र तुम हो रचते,
बंद रख होठ सहा हमने।।
सुनो, दिल पर जो मेरे गुजरी,
कहां कभी किसी ने जाना।
धैर्य टूटा, बोले जब लफ्ज़ मेरे,
पलभर में हुआ तुमसे बेगाना।।
सुनो अभी कुछ नहीं है बिगड़ा,
जिद्द में कही दुर्योधन न बन जाना।
लगे अगर कहीं भूल हुई है तुमसे,
स्वीकार कर मिलने तुम आ जाना।।
अंकुर सिंह
जौनपुर, उ. प्र.
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