- कहा— सिजोफ्रेनिया के सामान्य लक्षणों में भ्रमित सोच, भ्रम व मतिभ्रम शामिल
- विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस पर श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय में संगोष्ठी आयोजित
जौनपुर। विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस पर नईगंज स्थित श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय पर संगोष्ठी हुआ जहां श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय के डायरेक्टर और न्यूरो एवं मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. हरिनाथ यादव ने बताया कि 24 मई को विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सिज़ोफ्रेनिया एक गम्भीर मानसिक बीमारी है जो दुनिया भर में 21 मिलियन से ज़्यादा लोगों को प्रभावित करती है। इस दिन का उद्देश्य इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना और मानसिक बीमारियों से जुड़े मिथकों और अन्धविश्वासों को मिटाना है।
डॉ. यादव ने बताया कि सिज़ोफ्रेनिया के बारे में एक आम मिथक यह है कि इससे पीड़ित लोगों का व्यक्तित्व अलग होता है। हालांकि यह पूरी तरह से झूठ है। सिज़ोफ्रेनिया के रोगियों का व्यक्तित्व भी हर किसी की तरह एक ही होता है। सिज़ोफ्रेनिया के सामान्य लक्षणों में भ्रमित सोच, भ्रम और मतिभ्रम शामिल हैं। सिज़ोफ़्रेनिया एक मानसिक स्थिति है जिसमें मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में कुछ रसायन असंतुलित हो जाते हैं। सिज़ोफ्रेनिया शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'दिमाग का विभाजन' और इसे 1910 में स्विस मनोचिकित्सक डॉ. पॉल यूजेन ब्लेउलर द्वारा गढ़ा गया था।
उन्होंने बताया कि सिज़ोफ़्रेनिया की शुरुआत वयस्कता की शुरुआत या किशोरावस्था के आखिर में होती है। आम तौर पर 15 से 28 साल की उम्र के बीच होता है। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में बीमारी से पीड़ित होने का जोखिम भी ज़्यादा होता है। पुरुषों में महिलाओं की तुलना में बीमारी की शुरुआत कम उम्र में होती है। वे बीमारी के ज़्यादा गंभीर रूप से पीड़ित होते हैं, जिसमें ज़्यादा नकारात्मक लक्षण, पूरी तरह से ठीक होने की कम संवना और बदतर परिणाम होते हैं।
डा. यादव ने सिज़ोफ्रेनिया से जूझ रहे लोगों को उनके मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने की सलाह दिया। साथ ही बताया कि सिजोफ्रेनिया मरीजों को उपचार योजनाओं का पालन करना, तनाव से दूर रहना, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और सहायता समूहों में शामिल होना चाहिये। सिज़ोफ्रेनिया का इलाज दवा और थेरेपी का मिश्रण हो सकता है। दवाओं को ठीक से लें और अपनी थेरेपी सत्रों में नियमित रूप से भाग लें।
इस अवसर पर डॉ. सुशील यादव, उमानाथ यादव, प्रतिमा यादव (क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट), जंग बहादुर, आशुतोष, शिव बहादुर सहित समस्त हॉस्पिटल स्टाफ, मरीज सहित उनके परिजन उपस्थित रहे।
0 टिप्पणियाँ