जिनके किरदार से आती है सदाकत की खुशबू

जिनके किरदार से आती है सदाकत की खुशबू


यक़ीनन जिंदगी के हसीन लम्हात् वापस नहीं आते लेकिन अच्छे लोगों से ताल्लुकात और इनसे बावस्ता अच्छी यादें हमेशा दिलों में जिंदा रहती है
स्वर्गीय बाबू ठाकुर प्रसाद सिंह अपनी नेक दिली, दरिया दिली, समझदारी,ईमानदारी,जिम्मेदारी,बहादुरी,विवेक शक्ति,द्रृढ़ इच्छा शक्ति ,दूरदर्शिता, प्रेम और संयम की वजह से क्षत्रिय मूल्यों की पुनर्स्थापना में पीछे नहीं थे। ठाकुर-ठसक, न्याय,समरसता,बिरादराना सलूक कायम रखने वाले, हृदय सौंदर्य एवं बौद्धिक वैभव के मणिकांचन संयोग, मन ,कर्म एवं वचन का सुंदर समन्वय ,अप्रतिम प्रतिभा  संपन्न एक विलक्षण व्यक्तित्व थे-

लमहे लमहे में बसी है तुम्हारी यादों की महक, 
यह बात और है, मेरी नजरों से दूर हो तुम।

हे कीर्तिशेष! हे मूर्ति शेष! आपके ज़रिए तालीम की दुनिया में जो मशाल रोशन हुई आज भी पूरी शिद्दत के साथ तालीमी दुनिया की तीरगी को खत्म करने में कामयाब मिसाल और मशाल के तौर पर महफूज है-

दब जाता है तामीर करने वाला 
मगर, फनकार की तामीर बोलती है। 

यकीनन ,जो इल्मो अदब के चिराग को पुररोशन करते हैं वे सदैव जिंदा रहते हैं-
जो जलाते हैं इल्मो अदब के दिए,
जिंदा रहते हैं दुनिया में मरते नहीं। 

बाबूजी ऐसे चिराग की मानिंद थे कि जो हवा की रुख से जल तो सकते थे किंतु बुझना कबूल नहीं था। जरा सी उसूलों पर आंच आई की बड़ी-बड़ी हस्तियों से टकरा गए किंतु फतह हमेशा इन्हें ही दस्तयाब हुई। अब मैं केदारनाथ अग्रवाल के जुमले का इस्तेमाल करने से अपने को रोक नहीं सकता-

जब भी देखा लोहा देखा, 
लोहे जैसे तपते देखा,
गलते देखा,
ढलते देखा।
गोली जैसे चलते देखा।

मैं समझता हूं कि अत्याचार, गैर इंसाफ, गैर इंसानियत पर फतह कि वज़ह यकीनन  औघड़ की ही‌ नवाजिश थी-

खुली छत के चिराग कब के बुझ गए होते, 
कोई तो था जो हवाओं के हाथ थामे था।

सिंह साहब अवधूत के उसूलों पर चलनेवाले , अवधूत के ही कदमों में दस्तयार (पगड़ी )रखने वाले शायर, सिंह,सपूत की मानिंद लीक से हटकर‌ थे, कभी भी किसी और के पद-चिन्हो को अख्तियार नहीं किया-

कुछ चलते हैं पद चिन्हों पर,
कुछ चिन्ह बनाते हैं। 
है वही सूरमा जग में, 
जो अपने पद चिन्ह बनाते हैं।।

मौजूदा कॉलेज का निजाम बेशक, अपने आप में असरदार और काबिले तारीफ है। सिंह साहब के नक्शे कदम पर चलने वाले मोहतरम हृदय प्रसाद सिंह रानू जी की पूरी कोशिश रहती है कि बाप -पुरखों की बनाई शाख हर हालत में महफूज रहे और दावा करते हैं ,कौल करते हैं कि अपनी बिरासत को हम नहीं बचाएंगे तो कौन बचाएगा। सलीके से बुजुर्गों की निशानी सलामत रखना ही हमारी प्राथमिकता और मुकम्मल कोशिश है। इन सभी चीजों के बावजूद बाबूजी का तौर - तरीका, खूबसूरत लहज़ा प्रशासन और निजाम का सलीका, स्वजन निष्ठा, सामाजिक प्रतिष्ठा, कर्म में आस्था, वचन की प्रतिष्ठा, दीन दुखियों पर रहमदिली,साहस ,शील ,दया ,करुणा का समुच्चय, मर्यादा, वाणी- संयम अब कहां? 

लिख दूं सब कुछ तो मजा ही क्या ,
कभी तुम ओ भी पढ़ो
जो हम लिख नहीं पाते।

बाबूजी की  जगह हम कभी ले नहीं सके, 
यह उनकी अपनी विशेषता है या मुझ में कमी है। 

निगाह उठती नहीं किसी शख्स पर।
एक शख्स का किरदार मुझे पाबंद कर गया।

निश्चित तौर पर, सिंह साहब एक लोक पुरुष ,शक्ति रूप, शुद्ध बुद्ध आत्म स्वरूप, चिरपुराण-चिरनवीन, कर्मवीर, दयावीर, युग- मशाल , प्रकाश स्तंभ, सौम्यता की मूर्ति, शांतिदूत, युग की कीर्ति पताका,निष्काम कर्म की गीता थे जिनके किरदार की सदाकत और मक़बूलियत सदियों सदियों तक महफूज और कायम रहेगा-
आज ही नहीं कल भी, 
कल ही नहीं वर्षों तक, 
बरसों ही नहीं सदियों तक, 
डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़े जाएंगे। 

प्रेमनाथ सिंह चंदेल (संगीत शिक्षक)
श्री गांधी स्मारक इंटर कॉलेज समोधपुर जौनपुर।

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