लेख : कजली और उसके मजमून की विविधता


लोक साहित्य की एक सशक्त और लोकप्रिय विधा का नाम कजली है। बादलों की सुरमई रंगत ही कजरी या कजली के नामकरण का‌ वज़ह है। वारिशों के खुशगवार मौसम में लोगों के दिलो-दिमाग की नई -नई उम्मीदें और नये खयालात् के इज़हार का नाम कजली है। सावन की मखमली हरियाली लोगों के मन-मयूर को नाचने के लिए मजबूर कर देतीहै। दरअसल,रुत बरसात में जब पूरी कुदरत ही थिरक रही होती है तो कोई कैसे अपने इज़हार को रोक सकता है।
कजली की पैदाइश के सिलसिले में कुछ कहा नहीं जा सकता। इंसान को जभी सुर और लफ़्ज़ का इल्म हुआ होगा तभी से कजली की तरक्की का सफ़र जारी है अमीर खुसरो, बहादुर शाह ज़फ़र के वक्त से गुजरते हुए हिन्दी अदब के भारतेन्दु जी, अम्बिका दत्त व्यास, बदरी नारायण चौधरी "प्रेम घन" श्रीधर पाठक,द्विज बलदेव, पंडित राम नरेश त्रिपाठी आदि तक पहुंचते -पहुचते एक खूबसूरत मुकाम हासिल कर लिया। हिंदी साहित्य,ल़ोक साहित्य के अलावा हिन्दुस्तानी सेमी-क्लासिकल मौसीकी की शक्ल में भी कजली की अहमियत महफूज़ रही है। हिन्दी फिल्मों में भी इसका वजूद और एहतियात रहा है।

  • विषय-वस्तु की विविधता:-

कजली और उसके मजमून की विविधता-

जहां वर्षा ऋतु के गीतों में बृज का मल्हार,अवध की सावनी और बुन्देलखण्ड का राछरा को शोहरत मिली है वहीं मिर्जापुर और बनारस की कजली की मकबूलित कम नहीं है। बनारसी कजली का रस सबको अपने वश में कर लेता है। कजली की शुरुआती शक्ल अमीर खुसरो की रचना से हासिल होती है-

एरी सखी पिया घर आए,
भाग जगे इस आंगन को।

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जिस सावन में पिया घर नाहीं,
आग लगे उस सावन को।

मौजूदा वक्त में कजली अपनी परम्परा को कायम रखते हुए समकालीन लोक जीवन ‌का आईना बनी हुई है। जिंदगी का शायद ही कोई हिस्सा होगा, जिसका जिक्र इसमें न हुआ हो। सामाजिक, मज़हबी,माली हालत, कुदरत से लगाव,वतनपरस्ती, पर्यावरण चेतना, महंगाई, नशाखोरी, दहेज़ की वारदातें, परिवार नियोजन, औरतों के हालात हालात, हिज्रो-विसाल, परदेश रह रहे शौहर का ग़म , मायके की मुहब्बत, हंसी-मजाक, उम्मीद-गैर उम्मीद, खुशी और ग़म, सहेलियों से पीहर का तज़िकिरा, शौहर की आवारगी का तल्ख़ ऐतराज, रूठना, मनाना, मानना ये जिंदगी के सभी रंग कजली के संग।मगर, शौहर की सोहबत और पीहर की मुहब्बत की कशिश कुछ और ही है जो ताउम्र कायम व महफूज़ रहती है तभी मुहब्बत की हकीकत, तबीयतदारी और चैनदारी का खुश रंग मुख से टपक पड़ता है -"सवनवां में ना जइबो ननदी"
लेख- प्रेम नाथ सिंह "चंदेल"
एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत, संगीत)
श्री गांधी स्मारक इंटर कॉलेज समोधपुर,जौनपुर। 


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