कविता: ममता हुई तार-तार
मां की ममता तारतार हुई,
सरेआम वह मां बदनाम हुई।
दुश्मन को भी न मिले,
ऐसी औलाद, गुहार लगाई
आंखें हर पल रहतीं नम
बेकसूर होकर सजा मैंने पाई
पैदा कर उसे शर्म आई
कोसने लगी बुरी किस्मत को
काश घोट देती गला तेरा
तो आज सड़क पर नंगी
न होती वह अबला नारी
कितने प्यार से, कितनी ममता से
आंचल में छुपा कर
पिलाया करती थी दूध तुझे
याद कर सारा मंजर
रोने लगती है फूट-फूट कर
कितनी उम्मीद से पाला था
कितने प्यार से समझाया था
न मानी किसी की बात
कर डाला ऐसा काम
हो गये मां-बाप बदनाम
तेरी इन हरकतों से
आई आँच परवरिश पे
मां की ममता तारतार हुई
सरेआम वह बदनाम हुई।
नसु एंजेल, नागपुर ( महाराष्ट्र)
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