अपने कलम से लोगों को जागरूक करते रहते हैं साहित्यकार अंकुर

जौनपुर। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के डोभी ब्लाक (हरदासीपुर, चंदवक) में वरिष्ठ समाजसेवी बाबू रामेश्वर प्रसाद सिंह के तीसरे संतान के रूप में जन्मे और अपने कलम से जन-जन को जगाते हुए कम उम्र में ही साहित्य में लगभग 50 से अधिक सम्मान पत्र सहित देश विदेश से प्रकाशित होने वाली विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके ह्रदय से साहित्यकार और पेशे से अभियंता अंकुर सिंह के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामना सहित उनसे हुई बातचीत का कुछ अंश-
1- अपने शब्दों से लोगों को जगाने का विचार कब जगा आपमें?
उत्तर:- वास्तव में स्कूल समय में ही लिखता था, स्कूल के सभी कार्यक्रमों में भाग लेता था और स्कूल दिनों में मेरा भाषण का इंतजार सभी साथियों को रहता था और भाषण और लेख पर जिला स्तर के प्रतियोगिताओं में भी प्रतिभागी रहा हूं मैं।
वैसे तो मैं इजीनियरिंग का छात्र रहा हूं पर साहित्य में रुचि अकसर रही है मेरी, आज भीं फुरसत समय में किताबों के साथ ही रहता हूं। सच कहूं तो किताबे ही मेरी सच्चे दोस्त है।
2- परिवार मे किसका प्रभाव आप पर ज्यादा पड़ा?
उत्तर:- वास्तव में समाज के अच्छे बुरे का फर्क मैंने अपने पिता से सीखा जो हमेशा कहते है कि यदि अपने अधिकार में हो तो लोगों का भला कर देना चाहिए और उसके बदले में ईश्वर आपकी कही न कही मदद जरूर करेगा, मैने हमेशा देखा है लोगों को पापा के पास आते हुए अपने मदद हेतु, कई बार तो मैंने ये भी देखा की पापा बिना मांगे अपने स्तर से किसी इंसान की मदद निस्वार्थ भाव से कर देते है।
सच कहूं तो निस्वार्थ भाव से जीवन जीना अपने पापा से सीखता रहता हूं जिनके रिश्ते कभी पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी से और आज कई माननीय से होते हुए भी पापा कभी अपने व्यतिगत लाभ का ना सोचते हुए, हमेशा जनहित का ही सोचते है। बचपन का अधिकांश समय दादी के साथ बिता जिससे बचपन से ही मेरी धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ गई।
3- साहित्य सफर का शुरुआती दौर कैसा रहा आपका?
उत्तर:- स्कूल के शुरुआती दिन में भी लिखता था स्कूल से प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं में फिर इंजीनियरिंग में दाखिले के बाद लिखना बंद सा हो गया फिर कभी-कभी सोशल साइट पर लिखता था। 
इसी दौर में एक दिन राजस्थान के मित्र राजेश जी से मुलाकात हुई उन्होंने कहा अच्छा लिखते हो और साहित्य में उनके और बाकी मित्रों और सहयोगियों के मार्गदर्शन और सहयोग से साहित्य का सफर चल पड़ा और हां, शुरुआती दिनों में कुछ मित्रों ने प्रोत्साहन भरे शब्द तो कुछ करीबियों और मित्रों ने व्यंगात्मक भरे शब्द तीर का भी सामना करना पड़ा, जिसे नजरंदाज करते हुए अपने सफर पर चलता रहा मैं।
4- अपनी जीवन यात्रा के बारे में बताए, कैसा रहा अब तक का सफर?
उत्तर:- मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि यही है पापा एक समाजसेवी है और उनके पास कुछ कृषि योग्य भूमि है और कुछ किराए मिलता है जो हमारे जीविका के साधन रहा कभी। मेरे दादा जी ब्लाक में उच्च पद पर कार्यरत थे और जब पापा दो साल से थे तभी दादा जी गुजर गए। फिर दादी को मिलने वाली पेंशन इत्यादि से हमारे परिवार की जरूरत पूरी होती थी। 
मेरे जीवन में मेरी बड़ी बुआ और बनारस वाले नाना सहित कुछ अन्य करीबी रिश्तेदारों का अहम योगदान है जिन्होंने मेरे पढ़ाई और अन्य जरूरत की चीजों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिंदगी में जहां भी रहूंगा इन सभी का आभारी रहूंगा।
5- समाज के हालत पर क्या कहना चाहते है?
उत्तर:- अभी तो लोगों से इतना ही कहूंगा की इस महामारी में अपना और अपनों का ध्यान रखते हुए यथा संभव जरूरतमंद लोगों की मदद करें। सरकार के भरोसे न बैठे सभी राजनीतिक दल एक ही जैसे है कोई ज्यादा कोई कम सबको अपनी-अपनी कुर्सी बचानी है, आजकल तो संवेदना और वैचारिक राजनीति और राजनेता विरले ही मिलते है देखने को। 
राजनीतिक ही क्या आजकल तो कुछ को छोड़ गैर राजनीतिक व्यक्ति, मित्र रिश्तेदार भी मौका परस्त हो गए है जब तक स्वार्थ दिखता है तब तक कुछ कहते है काम निकलते ही अपने कहे से मुकर जाते है।
6- जब राजनीतिक की बात की तो धर्म और जाति के नाम पर राजनीति करने वाले को क्या कहेंगे आप?
उत्तर:- धर्म के नाम पर और जातिगत राजनीति का मैं विरोधी रहा हूं। अच्छे बुरे लोग तो हर धर्म और जाति में होते है देश के सेवा और सुरक्षा में हर धर्म- जाति के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राजनीतिक तो वैचारिक होनी चाहिए और उसका ध्येय लोगों का सेवा होनी चाहिए।
7- जीवन यात्रा साहित्यिक यात्रा की बात हो गई अब आप अपने हर यात्रा में साथ देने वाली साथी (जीवनसाथी) का चुनाव में देरी क्यों कर रहे है?
उत्तर:- कोई देरी नहीं, बस तलाश जारी है जो हर सुख-दुख के यात्रा में साथ देने वाली साथी की चयन में दो ही बातों का ध्यान रख रहा हूं कि वो ज्यादा शिक्षित हो और स्वभाव उसका मेरे से ज्यादा अच्छा हो (मेरे विचार संयुक्त परिवार, बरगद की छांव में लिखे मेरे विचारो से सहमत हो) क्योंकि यही दोनों चीजे आजीवन इंसान की नही जाती, बाकी रंग रूप और लेन-देन का कोई महत्व नहीं मेरे लिए अपने जीवनसाथी के चयन में। 
मैं तो ये भी मानना है कि इंसान में एक ही रंग का रक्त बहता है, यदि ये गुण मुझे अपने अलग जाति-धर्म के लड़की में दिखे और उसे मेरा साथ पसंद हो तो कुछ पारिवारिक सामाजिक विरोध को झेल उसके चयन में परहेज नहीं करूंगा, क्योंकि इंसान अपने शिक्षा और स्वभाव से जाना जाता है ना की अपने जाति धर्म से।
8- अंत में कुछ कहना चाहेंगे अपने चाहने वालो से?
उत्तर:- आपके समाचार पत्र के माध्यम से अपने पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं जिनकेे प्यार के वजह से यहां तक का सफर तय कर पाया हूं और उनसे अनुरोध है की जलसंरक्षण, जनसंख्या नियंत्रण, दहेज उत्पीड़न, पर्यावरण इत्यादि जैसे मुद्दों पर लिखे मेरे विचार को अमल में लाए और लोगों को जागरूक भी करें।
इसके साथ ही आप सभी संपादक का भी बहुत बहुत धन्यवाद जो साहित्य की सेवा साहित्यकारों के साथ निस्वार्थ भाव से जुड़े हैं हम सब कलमकार यही चाहेंगे की हमारे साथ आपका अखबार भी नई बुलंदियों को छुए। ईश्वर मुझपर अपना आशीर्वाद, आप सब और मुझे पढ़ने वाले अपना साथ हमेशा बनाए रखे यही उपहार चाहिए मुझे अपने जन्मदिन पर सभी से।
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