जौनपुर। राज्य सूचना आयुक्त वीरेंद्र सिंह 'वत्स' ने रविवार की शाम सर्किट हाउस में प्रेस वार्ता की। उन्होंने कहा कि 13 मार्च 2024 से अब तक कुल 25 हजार 381 मामलों की सुनवाई कर निबटारा किया गया है। इस समय आयोग के समक्ष 17 हजार 669 मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं जिनमें पूर्वांचल के 10 जनपद में सर्वाधिक मामले सोनभद्र के लंबित हैं। इसके अलावा दूसरे नंबर पर मिर्जापुर में 383, तीसरे नंबर पर गाजीपुर में 382 मामले लंबित हैं। वहीं जौनपुर में 263, आजमगढ़ में 244, वाराणसी में 238, बलिया में 137, चंदौली में 87, मऊ में 64, भदोही में 62 आरटीआई के मामले लंबित हैं।
राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि प्रदेश में आरटीआई मांगने पर सूचना के साथ समाधान देने पर आयोग का जोर है। इसका संदेश जनता के बीच पहुंचना चाहिए। मामलों के निस्तारण के लिए जो लोग आयोग पहुंच रहे हैं, आयोग का संकल्प है कि तीन सुनवाई में प्रकरण का निस्तारण कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्य सूचना आयोग के प्रति आम जनता का भरोसा बढ़ा है। हालांकि कुछ आरटीआई कार्यकर्ता इसका दुरुपयोग करते हुए बड़ी संख्या में सूचनाएं मांग रहे हैं। इससे शासन- प्रशासन के सामान्य कामकाज में बाधा उत्पन्न होती है। सोनभद्र में एक आरटीआई कार्यकर्ता ने तो अकेले 343 वाद दाखिल कर रखे हैं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी स्थिति में शासन प्रशासन के 75 फीसदी अधिकारी अपना 75 फीसदी समय सूचना जुटाने में नहीं लगा सकते हैं।
राज्य सूचना आयुक्त ने बताया कि गोपनीय सूचनाएं जैसे विजिलेंस जांच, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों तथा व्यावसायिक स्पर्धा जैसे कई मामले हैं, जिनकी सूचना नहीं दी जा सकती। इसके साथ ही बिना लोकहित सिद्ध हुए किसी की निजी जानकारी भी उजागर नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा कि आरटीआई के जरिए आमजन को बहुत सहूलियत हुई है। समय से सूचना न देने और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाता है। आरटीआई अधिनियम के तहत कोई भी लोक सूचना अधिकारी दुर्भावनापूर्वक कोई जानकारी देने से इन्कार करता है या गलत जानकारी देता है या आधी अधूरी जानकारी देता है या फिर कोई जानकारी देने से बचने के लिए दस्तावेज नष्ट करता है तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। अगर कोई अधिकारी समय पर सूचना नहीं देता है तो उस पर 250 रुपये रोजाना की दर से जुर्माना लगाया जाएगा। जुर्माना राशि 25 हजार रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती। इसके अलावा केंद्रीय सूचना आयोग या फिर राज्य सूचना आयोग ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई करने की सिफारिश भी कर सकते हैं और उनके खिलाफ जांच भी कर सकते हैं।


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