लेख: व्यक्तित्व का समग्र विकास ही शिक्षा

लेख: व्यक्तित्व का समग्र विकास ही शिक्षा

लोक (समाज ) एवं वेद जो कह रहे थे ,मैं उसके पीछे-पीछे अंधा होकर चल रहा था लेकिन एक पूर्ण गुरु ने मेरे हाथ में दीपक थमा दिया ताकि मैं अपना रास्ता खुद देख सकूं , चुन सकूं और उस पर चल सकूं। कबीर दास के उक्त विचार एक अच्छे गुरु की महत्ता को बता रहे हैं। 

एक अच्छा शिक्षक वह नहीं जो केवल ज्ञान देता है ,बल्कि वह है, जो ज्ञान प्राप्त करने के तरीके बताता है। आज तो गूगल और चैट जीपीटी के जमाने में ज्ञान के स्रोतों की कमी नहीं है किंतु कहां से पढ़ना है, क्या पढ़ना है, कितना पढ़ना है और क्या नहीं पढ़ना है यह बातें एक छात्र को पता हो जाए तो समझ जाइए शिक्षक ने अपना पर्याप्त दायित्व पूरा कर दिया। शेष दायित्व उसे वाणी, कर्म व आचरण से पूरा करना होगा जो छात्र के व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ता है।कन्फ्यूशियस से एक बार उनके शिष्य ने पूछा, गुरुदेव 'शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य क्या है'? कन्फ्यूशियस ने कहा यदि शिक्षा से व्यक्ति में विनम्रता नहीं आती है और चरित्र का विकास नहीं  होता है तो वह शिक्षा नहीं केवल जानकारी है। यह बात आज भी उतनी ही सत्य प्रतीत होती है।


 डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम साधारण परिवार से निकलकर यदि मिसाइल मैन बने तो  उन्होंने केवल किताबी ज्ञान नहीं प्राप्त किया बल्कि उनके गुरु की प्रेरणा, उनके चरित्र और सादगी पूर्ण जीवन ने उन्हें महान बनाया और उनके जीवन को बदल दिया। आज शिक्षा में बहुत प्रगति हुई है। स्मार्ट क्लास, डिजिटल लर्निंग, नई शिक्षा नीति 2020 कौशल आधारित विषय, सभी परिवर्तन शिक्षा को आधुनिक व उपयोगी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण एवं सार्थक कदम है। इन सबके बावजूद शिक्षा आज भी अंकों तक ही सीमित है। परिणाम स्वरूप छात्र किताबों में तो निपुण हो जाते हैं लेकिन व्यवहारिक जीवन जीने  में पीछे हो जाते हैं। महान दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि शिक्षा हमें केवल भौतिकता तक ही सीमित न रखे बल्कि हमें आत्मिक शुद्धता प्रदान करें।  आत्मा की शुद्धता से उनका तात्पर्य चरित्र निर्माण ही था। सुकरात से एक बार उनके शिष्य ने पूछा गुरुदेव शिक्षा का वास्तविक सार क्या है ? सुकरात ने कहा ज्ञान का पहला चरण है यह जानना है कि हम कुछ नहीं जानते अर्थात शिक्षा का उद्देश्य अहंकार बढ़ाना नहीं बल्कि सीखने की प्यास जगाना होनी चाहिए। शिष्य में गुरु के प्रति समर्पण का भाव होना चाहिए। बिना इस भाव के न तो वह कुछ सीख सकता है और न हीं कुछ कर सकता है। आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) का दौर है। जानकार बताते हैं कि 8 से 10 वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में शायद  शिक्षकों का स्थान एआई ले ले। बेशक अच्छी शिक्षा व जानकारी छात्रों को दे दे, किंतु गुरु शिष्य संबंधों का क्या होगा? 


वह कोमल भाव जो गुरु शिष्य के अंदर  जगा पाता है, वैसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  का रोबोट जगा सकेगा ऐसा कम ही प्रतीत होता है। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय  गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने 130 वर्ष पहले ही कह दिया था कि शिक्षा पुस्तकों की चार दीवारी तक सीमित नहीं होनी चाहिए  प्रकृति के बीच रहकर सीखें । इसीलिए उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी। उन्होंने शिक्षा को जीवन, प्रकृति व रचनात्मकता से जोड़ा। शिक्षा में सुधार के लिए सरकार निरंतर प्रयास कर रही है किंतु कुछ सुझाव विचारणीय है। जिन पर विचार कर आगे बढ़ा जा सकता है। जैसे डॉक्टर केवल किताबों से नहीं बल्कि मरीजों को देखकर उनसे भी सीखते हैं, वैसे ही छात्र को व्यावहारिक ज्ञान देना आवश्यक है। प्रत्येक विषय को व्यावहारिक ज्ञान से जोड़कर पढ़ाया जाना चाहिए । इससे दिया गया ज्ञान वे शीघ्र समझेंगे और स्थाई भी रहेगा। नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी प्रत्येक स्तर पर देना चाहिए। शिक्षक को बदलती हुई शिक्षा पद्धति के अनुसार समय-समय पर प्रशिक्षित भी करना चाहिए। यदि शिक्षक समय व तकनीक के साथ नहीं बदलेंगे तो शिक्षा अधूरी रहेगी। एक मुख्य विषय परीक्षा पद्धति का है। आज की मूल्यांकन पद्धति अंकों पर ही आधारित है। सब कुछ अंक ही माने जाते हैं वास्तविक मूल्यांकन रचनात्मकता , तार्किक सोच व जीवन कौशल का होना चाहिए।


                     लेखक-धर्मदेव शर्मा  

           प्रवक्ता- भौतिकी 

     श्री गांधी स्मारक इंटर कॉलेज समोधपुर, जौनपुर

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