जौनपुर: पतंगबाज केवल काटन के धागे से ही उड़ा सकते हैं पतंग: विकास तिवारी
किलर मांझा के विरूद्ध मकर संक्रान्ति पर युवाओं ने चलाया जागरूकता अभियान
जौनपुर। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के लिए प्रयोग में लाये जा रहे प्रतिबंधित नायलान धागा, सिन्थेटिक लेपन युक्त धागा, नान बायोडिग्रेडेबल मांझा, प्लास्टिक धागा, तांत धागा का उपयोग न करने के लिए मुफ्तीगंज बाजार में दीवानी न्यायालय के अधिवक्ता विकास तिवारी की अगुवाई में जागरूकता अभियान चलाया गया। साथ ही बाजार क्षेत्र में किलर मांझा पर प्रतिबंध लगे नाम का पोस्टर लगाकर लोगों से उक्त प्रकार के धागा का उपयोग न करने का आग्रह भी किया। नगर भ्रमण के बाद स्थानीय पुलिस चौकी पर पहुंचकर चौकी प्रभारी से मिलकर बाजार में बिक रहे प्रतिबंधित धागे पर रोक लगाने की मांग किया।
इस मौके पर विकास तिवारी ने कहा कि पतंग उड़ाने वाले प्रतिबंधित धागे पर रोक के बावजूद भी भारी संख्या में लोग इसे खरीद और बेच रहे हैं। खरीदने और बेचने वालों पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 15 के तहत 5 साल तक की सजा और 1 लाख तक का जुर्माना व भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 (सरकारी आदेश का उल्लंघन) के तहत 6 महीने तक की सजा या जुर्माना है। इतना ही नहीं, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की धारा 11 के तहत 50,000 तक का जुर्माना और 5 साल की सजा का प्रावधान है। साथ ही प्रशासनिक कार्रवाई भी है।
जिला प्रशासन और पुलिस की छापेमारी में पकड़े जाने पर तुरंत गिरफ्तार भी किया जाता है। पतंग उड़ाने वाले प्रतिबंधित धागा व मांझे पर प्रतिबंध भले ही पर्यावरण कानून के तहत लगा परंतु इसके इस्तेमाल की वजह से अगर कोई ऐसा अपराध हुआ हो जो दूसरे कानून के अंतर्गत दंडनीय है तो अभियोजन को दूसरे कानून के तहत ही प्राथमिकता दी जाएगी। पर्यावरण संरक्षण कानून की धारा-24 में साफ तौर पर ऐसा प्रावधान है। श्री तिवारी ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में 'नो फॉल्ट लायबिलिटी' सिद्धांत लगता है जिसका मतलब है कि अगर आपकी किसी हरकत से किसी की जान चली जाए और अगर उसमें आपकी गलती नहीं भी है तब भी आपकी जिम्मेदारी तो बनेगी, इसलिए कानून के विरुद्ध मामलों में कोई छूट नहीं होनी चाहिये। वर्ष 2017 में जस्टिस स्वतंत्र कुमार की बेंच ने ही नायलान धागा, प्लास्टिक धागा, नान बायोडिग्रेडेबल मांझे, तात धागा पर प्रतिबंध का फैसला सुनाया था।
तब वही एनजीटी अध्यक्ष भी थे। उनका भी मानना है कि ऐसे मामलों में अगर कोई आईपीसी की धाराओं में मुकदमा दर्ज करवाना चाहे तो बिल्कुल करवा सकता है। इसके लिये जरूरी नहीं कि वह व्यक्ति मृतक का परिजन हो लेकिन प्रतिबंध के लगभग आठ साल बाद भी मांझे से मौत के मामलों का सामने आना निश्चित रूप से आम जनता और जिम्मेदार अथॉरिटीज की ओर से इसे लागू करने में इच्छाशक्ति की कमी दिखाता है।पतंगबाज केवल कॉटन के धागे से ही पतंग उड़ा सकते हैं। बावजूद इसके दुकानदार चाइनीज मांझे की बिक्री कर रहे हैं और हादसे भी हो रहें हैं। इस अवसर पर आलोक राय, करूणेन्द्र सिंह, नीरज पाठक, आलोक राय, शुभम राय, शशिकांत प्रजापति, नवीन यादव, गोविन्द यादव, अनन्त मोदनवाल, अनिल मोदनवाल सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।
0 टिप्पणियाँ