सबको सम्मति दें भगवान


सबको सम्मति दें भगवान



सांप्रदायिक सद्भाव के संस्थापक, संपोषक, सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधी जी की सर्वप्रिय भजन "रघुपति राघव राजा राम"उनके जीवन का मूल मंत्र था। यह उनके दैनिक प्रार्थना में परमात्मा से बात‌ -चीत की एक आध्यात्मिक प्रणाली थी,जो उनकी ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और समर्पण का साक्ष्य स्वरूप है। किसी भी प्रार्थना में "सर्वे भवंतु सुखिन:"की सर्व मंगल, लोक कल्याण की भावना ही उसकी की आत्मा होती है। गांधी जी की यह प्रार्थना धर्म एवं संप्रदाय निरपेक्ष सर्वधर्म समभाव से भरा" सबको सम्मति "के लिए ईश्वर से अपील है-

रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम। 
ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सबको सम्मति दें भगवान।।

यद्यपि यह प्रार्थना लक्ष्मणाचार्य जी के द्वारा लिखी गई है किंतु गांधी जी ने धर्मनिरपेक्षता तथा सर्वधर्म समभाव की वजह से "ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सम्मति दे भगवान" का जुमला अपनी तरफ से इस्तेमाल करके सबके सम्यक मति की  ईश्वर से अभ्यर्थना की गई है। 
अहिंसा का सामान्य अर्थ है जीवों पर दया करना। व्यापक अर्थ में मन से, वाणी से, कर्म से किसी भी प्राणी को कष्ट न देना ही सच्ची अहिंसा है। पराई पीर की सच्ची अनुभूति, अभिमान शून्य होकर परहित में सलंग्नता ही सच्चे वैष्णव की पहचान और साधुता है-
सबको सम्मति दें भगवान



वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे,
पर दुक्खे उपकार करें तोये, मन अभिमान न आणे रे।

गुजरात प्रांत के 15वीं शताब्दी के संत नरसी मेहता की सद्भावना, उत्तम आकांक्षाओं और आध्यात्मिक प्रभाव से पुरअसर थे गांधीजी। सभी लोगों का सम्मान करना, किसी की निंदा न करना,मन वाणी और कर्म से निश्छलता,परदारेषु मातृवत की पवित्र भारतीय संस्कृति की पक्षधरता गांधी जी की प्रकृति थी। निश्चित रूप से संत नरसी मेहता की जीवन शैली और उनकी प्रसिद्ध लोकप्रिय भजन वैष्णव जन से गांधी जी को सत्य अहिंसा तथा सदाचार की प्रेरणा प्राप्त हुई होगी। 

सच्चे दिल से की गई प्रार्थना से आत्मा के गहनतर भाग में प्रकाश पैदा होता है। यह हमारे भीतर के अभिमान, दुर्बलताओं, रोगों, व्याधियों को दूर करने के अतिरिक्त मन की दुश्चिंता को पूर्ण रूप से दूर कर देती है। यह बुरा देखने, बुरा सुननेऔर बुरा बोलने की दुर्बुद्धि और दुराचरण को दूर करके साधक में बुरा न सोचने का खास गुण पैदा करती है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना समस्त दुर्बलताओं विश्रृंखलताओं एवं अनेक दिशा में बहकने वाली प्रवृत्तियों का निषेध कर सम्यक मति के लिए दिशा निर्देश करती है। सम्यक मति अर्थात् अच्छी सोच से समस्त वातावरण पवित्रता, शांति, और विश्व प्रेम की मंगलमय भावना से घनीभूत हो उठता है और आज इसी परिप्रेक्ष्य में गांधी जी की "सबको सम्मति दें भगवान" की अवधारणा को समझने की आवश्यकता है।

सबको सम्मति दें भगवान

एन. सिंह "चंदेल" (संगीत शिक्षक)
श्री गांधी स्मारक इंटर कॉलेज, समोधपुर,जौनपुर।

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