हिचकी......!

जितेन्द्र कुमार दुबे


हिचकी......!



हिचकी की दुनिया
कुछ अजीब है मेरे भाई
जो बचपन में आई...
माँ पीठ ठोकर दो घूँट पानी पिलाई
कुछ बड़ा होने पर...!
मामा याद कर रहे हैं क्या...?
कह कर माँ मुझे खूब बहकाई....
हिचकियों के बहाने ही,
रिश्तों को भी...खूब याद किया उसने
साथ ही...अपना धरम भी निभाई...
आज का दौर तो देखो मित्रों...!
कुछ तीखा सा...खा लेने पर...
या फिर...गले में खराश आने पर...
जब कभी हिचकी आई...!
कोई कुछ पूछा तो नहीं भाई
लेकिन महफिल में,
मेरी खूब हुई जग हँसाई...
यही हिचकी..युवावस्था में जो आई..
कनखी से...मजाक ही में...
बोल ही देती रही भौजाई,
कि याद कर रही है वही...!
जो होने वाली है तेरी लुगाई...
लगातार हिचकी जो आई...!
डॉक्टर ने बताया...
वैसे तो यह अनैच्छिक क्रिया है..पर
पर्दे के पीछे से उसने...!
कोई ना कोई नई सी बीमारी बताई...
लिखा टेस्ट और लिखी खूब दवाई...
मेरी सेहत का तो ध्यान रखा...पर...
हिचकियों से...किसी रिश्तो की...!
कोई चर्चा ही नहीं हुई मेरे भाई...
बुढ़ापे में....चुपके से...
एक रात ऐसी आई...जब...!
चारपाई पर ओढ़े पड़ा था मैं रजाई...
हिचकी....अचानक दस्तक देकर...
मुझको नींद से जगाई...
सन्नाटे में करता ही रहा मैं...!
इसकी-उसकी.…दुहाई पर दुहाई...
पर मदद को मेरी,
कोई नहीं निकला मेरे भाई...
हर कोई ओढ़े ही रहा,
यहाँ अपनी-अपनी रजाई...
फिर मुझे खुद ही...जाने क्यों...?
यह बात समझ में आई,
लगता है शिद्दत से...!
कोई याद कर रहा है...मुझे मेरे भाई..
छूटने को है...मोह-माया जगत की..
चली-चला की बेला...अब...
शायद...आन पड़ी है मेरे भाई...!
अब और क्या कहूँ मैं मित्रों...?
सचमुच...यही...बस यही है...
इस जगत में....!
हिचकी की पूरी-पूरी सच्चाई...!

रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद... कासगंज

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ