"सनातन-योगी"
लोकहित गृह त्याग निकला, धर्म-ध्वजा धर योगी एक !
गो-रक्षा संकल्प चित्त चिर, गो-माता करती अभिषेक !!
आस अडिग, विश्वास-ऋद्ध वह, चला सृजन के पथ पावन ,
मनुज दनुज दलने सत् पथ अब, बाधाएं हैं राह अनेक !!१!!
माया, ममता, लोभ, मोह ना, सेवा की उद्दाम ललक !
उसमें शिव की, राम, कृष्ण की, परशुराम की पुण्य झलक !
कर्मठता का वह प्रतीक है, श्रम, चिन्तन की एक अलख !
सुखी और सम्पन्न देश हो, उसका भव पुनीत उद्देश !!२!!
वह प्रवीण गणितज्ञ, संत खलु, देखे स्वप्न, करे साकार !
सत्य-सनातन, यम, संयम शुभ, गो-सेवा उसका आधार !
रूखी-सूखी खा, जल पीना, मानवता उसका विस्तार!
गांव-गांव हो बिजली पानी , उसका व्रत प्रिय , उसकी टेक !!३!!
राजा-रंक सनातन 'योगी', अंक-अंक का जाने खेल !
शिक्षा देशी, नहीं विदेशी, नहीं पतित-चरितों से मेल !
प्राणि-वनस्पति, संग शून्य, भू, अपराधों की कसे नकेल !
अध्येता, ज्ञानी, ध्यानी वह, मां वाणी का वह आलेख !!४!!
नवयुग लाने आया 'योगी', हमें संग चलना होगा !
नया एक इतिहास विरचने, 'योगी' सा जलना होगा !
चिर-प्रवंचितों के संग, कह दो, अब कोई छल ना होगा !
संग्रह-स्वार्थ त्यागना होगा, 'योगी' का कालिक संदेश !!५!!
शिक्षा-स्वास्थ्य विषय प्रिय उसके, स्त्री-शिक्षा पर है ध्यान !
स्त्री की रक्षा, स्वतंत्रता, समग्रता का ले संज्ञान !
नगर-नगर में डगर-डगर में, चर्चा-विषय बने विज्ञान !
ये 'योगी' की सूझ-बूझ है, उत्तम हो उत्तर प्रदेश !!६!!
'योगी' एक राजयोगी है, राज्यवासियों से अति प्यार !
न्योछावर है जीवन उसका, उसका जन-जन पर अधिकार !
गंगा-यमुना का सपूत वह, सतत हिमालय का उद्गार !
दीर्घ-तपस्वी, शासक, चिंतक, सन्यासी का उसका भेष !!७!!
राजेन्द्र दुबे
नागपुर महाराष्ट्र।
मो. 8999136288
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